
स्पाइक प्रोटीन कोरोनावायरस के बाहरी हिस्से पर पाए जाने वाले छोटे प्रोटीन होते हैं। ये प्रोटीन किसी मुकुट (spike) की तरह वायरस के चारों ओर फैले रहते हैं, इसीलिए इन्हें स्पाइक प्रोटीन कहा जाता है।
स्पाइक प्रोटीन कैसे काम करता है?
मानव शरीर की कोशिकाओं में रिसेप्टर्स (receptors) होते हैं, जिन्हें वायरस अपना प्रवेश द्वार बनाते हैं। कोरोनावायरस का स्पाइक प्रोटीन इन रिसेप्टर्स से जुड़ जाता है। यह जुड़ाव वायरस को कोशिका के अंदर प्रवेश करने में मदद करता है। एक बार वायरस कोशिका के अंदर चला जाता है, तो वो अपने आप को कॉपी करना शुरू कर देता है, जिससे नई वायरस कण बनते हैं और ये कोशिका से बाहर निकलकर दूसरी कोशिकाओं को संक्रमित कर देते हैं।
टीके कैसे काम करते हैं?
कोविड-19 के कई टीके स्पाइक प्रोटीन को लक्ष्य बनाकर बनाए गए हैं। ये टीके शरीर को स्पाइक प्रोटीन की एक निष्क्रिय या कमज़ोर कॉपी दिखाते हैं। इससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता (immune system) सक्रिय हो जाती है और वह असली वायरस से लड़ने के लिए एंटीबॉडी (antibodies) बना लेती है। जब असली वायरस शरीर में प्रवेश करने की कोशिश करता है, तो ये एंटीबॉडी उसे कोशिकाओं में घुसने से रोक देती हैं या उसका संक्रमण कम कर देती हैं।
अतिरिक्त जानकारी:
कोरोनावायरस के अलग-अलग प्रकारों में स्पाइक प्रोटीन की संरचना में थोड़ा बहुत अंतर हो सकता है।
वैज्ञानिक लगातार कोरोनावायरस के म्यूटेशन (mutations) पर नज़र रख रहे हैं, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि टीके कारगर है या नहीं
मुझे उम्मीद है कि यह ब्लॉग आपको स्पाइक प्रोटीन को समझने में मददगार रहा होगा। अगर आपके कोई सवाल हैं, तो कृपया उन्हें कमेंट में लिखें।
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